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Saturday, 11 October 2025

उ०प्र० बेसिक शिक्षा शिक्षक, जिनकी एन०पी०एस० की कटौती हो रही है, वे अपनी सेवाकाल के दौरान निम्नानुसार एन०पी०एस० से धनराशि का आहरण कैसे कर सकते हैं , जानें!



उ०प्र० बेसिक शिक्षा यो शिक्षक, जिनकी एन०पी०एस० की कटौती हो रही है, वे अपनी सेवाकाल के दौरान निम्नानुसार एन०पी०एस० से धनराशि का आहरण कर सकते हैं-

क) पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के नियमों के अनुसार, अभिदाता अपने अंशदान का 25 प्रतिशत तक निकाल सकते हैं, जिसमें रिटर्न और नियोक्ता का अंशदान (यदि कोई हो) शामिल नहीं है।

2. एन०पी०एस० से निकासी के कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्नवत् है-

क ) एनपीएस आंशिक निकासी कासी के लिए अनुमत उद्देश्य हैं-

1. बच्चों की उच्च शिक्षा फीस (कानूनी रूप से गोद लिए गए बच्चों की भी)

2 बच्चों की शादी का खर्च (कानूनी रूप से गोद लिए गए बच्चों का भी)

3. आवासीय मकान/फ्लैट खरीदना/बनाना।

4. निर्दिष्ट गंभीर बीमारियों के लिए उपचार।

5. विकलांगता/अक्षमता व्यय।

ख) एनपीएस से आंशिक निकासी करने के लिए, अभिदाता को यह करना होगा-

1. खाता की अवधि 3 वर्ष से अधिक होना चाहिए।

2. एनपीएस आंशिक निकासी नियमों के अनुसार, ग्राहक अपने अंशदान का केवल 25 प्रतिशत तक ही निकाल सकते हैं।

3. पीएफआरडीए के नियमों के अनुसार, ग्राहक अपने एनपीएस खाते से जीवन भर में अधिकतम 3 आंशिक निकासी कर सकते हैं।

एनपीएस आंशिक निधि की पहली निकासी के बाद की निकासी के लिए, केवल

अंतिम निकासी तिथि के बाद के वृद्धिशील अंशदान पर ही विचार किया जाएगा।

ग) एनपीएस में आशिक निकासी का अनुरोध अभिदाता द्वारा निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है।

1. निकासी के उद्देश्य की घोषणा के साथ निकासी फॉर्म भरना।

2. एनपीएस रिकॉर्डकीपिंग एजेंसी को उनके नोडल कार्यालय के माध्यम से निकासी अनुरोध प्रस्तुत करना।

3. गंभीर बीमारी की स्थिति में, परिवार के सदस्य ग्राहक की ओर से निकासी अनुरोध प्रस्तुत कर सकते हैं।


मानव संपदा पोर्टल: नोटिस कैसे देखें और स्पष्टीकरण (Clarification) कैसे दें - स्टेप-बाय-स्टेप गाइड!

मानव संपदा पोर्टल: नोटिस कैसे देखें और स्पष्टीकरण (Clarification) कैसे दें - स्टेप-बाय-स्टेप गाइड!


क्या आप उत्तर प्रदेश के सरकारी कर्मचारी हैं? तो 'मानव संपदा पोर्टल' (Manav Sampada Portal) आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस पोर्टल के माध्यम से आपके सेवा से जुड़े कई काम होते हैं, और यहीं पर विभाग द्वारा भेजे गए ज़रूरी नोटिस भी आते हैं।
अगर आपको यह नहीं पता कि पोर्टल पर भेजे गए नोटिस (Notice) को कैसे चेक करें और उस पर आवश्यक स्पष्टीकरण (Explanation) कैसे दें, तो चिंता न करें! यह आसान स्टेप-बाय-स्टेप गाइड आपकी मदद करेगी।

स्टेप 1: मानव संपदा पोर्टल पर लॉग इन करें
सबसे पहले, आपको मानव संपदा पोर्टल की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा और अपने क्रेडेंशियल्स (User ID और Password) का उपयोग करके लॉग इन करना होगा।

स्टेप 2: 'नोटिस' या 'नोटिस/स्पष्टीकरण' टैब खोजें
लॉग इन करने के बाद, डैशबोर्ड पर ध्यान दें। General में आपको "नोटिस" या "नोटिस/स्पष्टीकरण" (Notice/Clarification) जैसा कोई टैब या विकल्प दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें।

स्टेप 3: जारी किए गए नोटिस की सूची देखें
इस सेक्शन में आपको विभाग द्वारा जारी किए गए सभी नोटिस की एक सूची (List) दिखाई देगी।
नोटिस का विषय (Subject): इससे आपको पता चलेगा कि नोटिस किस बारे में है।
जारी करने की तिथि (Date of Issue): इससे पता चलेगा कि नोटिस कब भेजा गया था।
स्थिति (Status): यहाँ यह भी पता चलेगा कि आपने नोटिस देखा है या नहीं।

स्टेप 4: नोटिस खोलें और ध्यान से पढ़ें
जिस नोटिस के संबंध में आपको स्पष्टीकरण देना है, उस पर क्लिक करें। नोटिस को पूरा और बहुत ध्यान से पढ़ें ताकि आप समझ सकें कि विभाग आपसे किस विषय पर और क्या जानकारी या स्पष्टीकरण मांग रहा है।

स्टेप 5: स्पष्टीकरण देने की प्रक्रिया शुरू करें
नोटिस के नीचे या साइड में आपको "स्पष्टीकरण दें" (Give Clarification) या "रिप्लाई करें" (Reply) जैसा कोई बटन मिलेगा। इस पर क्लिक करें।

स्टेप 6: स्पष्टीकरण लिखें और दस्तावेज़ संलग्न करें (Attach Documents)
एक नया पेज खुलेगा जहाँ आपको अपना स्पष्टीकरण लिखना होगा।
स्पष्ट और संक्षिप्त लिखें: अपनी बात स्पष्ट, विनम्र और संक्षिप्त तरीके से लिखें।
दस्तावेज़ अटैच करें: यदि विभाग ने किसी दस्तावेज़ की मांग की है या आपके स्पष्टीकरण के समर्थन में कोई सबूत/दस्तावेज़ है (जैसे छुट्टी का प्रमाण, मेडिकल सर्टिफिकेट आदि), तो उसे स्कैन करके अपलोड करें। ध्यान दें कि फ़ाइल का साइज़ और फॉर्मेट (जैसे PDF) पोर्टल के दिशानिर्देशों के अनुरूप हो।

स्टेप 7: सबमिट करें
अपना स्पष्टीकरण लिखने और सभी आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करने के बाद, "सबमिट" बटन पर क्लिक करें।
पुष्टिकरण संदेश: सबमिट करने के बाद, आपको स्क्रीन पर एक पुष्टिकरण संदेश (Confirmation Message) दिखाई देगा। हो सके तो इसका स्क्रीनशॉट लेकर रख लें।
स्थिति जांचें: अब 'नोटिस' सेक्शन में जाकर अपने नोटिस की स्थिति (Status) दोबारा जांचें। अब यह 'स्पष्टीकरण दिया गया' या 'Replied' दिखाई दे सकता है।

निष्कर्ष:
मानव संपदा पोर्टल सरकारी कर्मचारियों के लिए एक ज़रूरी उपकरण है। नोटिस को समय पर चेक करना और उसका उचित जवाब देना आपकी सेवा के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया का पालन करके आप आसानी से अपना काम पूरा कर सकते हैं।

🎯 `मानव संपदा पोर्टल` *नोटिस कैसे चेक करें और स्पष्टीकरण देने की स्टेप-बाय-स्टेप प्रक्रिया* 

🌐 _मानव संपदा पोर्टल वेबसाइट:_

🔗https://ehrms.upsdc.gov.in/

*✍️1. पोर्टल में लॉगिन करें*

* मानव संपदा पोर्टल खोलें और अपना ID एवं पासवर्ड डालकर लॉगिन करें।

*✍️2. General मेनू खोलें*

* लॉगिन के बाद, Leave module के बगल में, बिल्कुल बाईं तरफ “General” पर क्लिक करें।

*✍️3. Notice सेक्शन चुनें*

* General खोलने पर जो विकल्प आएँगे, उनमें से “Notice and departmental proceedings” पर क्लिक करें।

*✍️4. अपने खिलाफ नोटिस देखें*

* उपलब्ध पाँच विकल्पों में से “View notice against you” पर क्लिक करें।

*✍️5. अगर नोटिस न हो तो*

* कोई नोटिस नहीं होने पर स्क्रीन पर “No record found” दिखाई देगा।

*✍️6. नोटिस मौजूद होने पर तालिका देखें*

* नोटिस जारी होने पर एक तालिका खुलेगी — इसमें Serial, ID, Date, Status, Detail आदि कॉलम होंगे।

*✍️7. नोटिस का पूरा विवरण देखें*

* जिस नोटिस की जानकारी चाहिए, उस नोटिस की “View Detail” पर क्लिक करें। वहां तारीख, जारी करने वाला अधिकारी, कारण व पूरा विवरण दिखेगा।

*✍️8. नोटिस डाउनलोड / प्रिंट करें*

* दाहिनी तरफ “View notice details” पर क्लिक करके नोटिस का PDF डाउनलोड करें।

* आवश्यकता हो तो नीचे Print बटन से प्रिंट निकाल लें।

*✍️9. नोटिस ध्यान से पढ़ें*

* नोटिस को अच्छी तरह पढ़कर समझें—नोटिस में वर्णित तथ्यों और मांगे गए स्पष्टीकरण का ख्याल रखें।

* डाउनलोड की हुई फ़ाइल सुरक्षित जगह (फोल्डर/ड्राइव) में रखें।

*✍️10. स्पष्टीकरण देने के लिए Reply पर क्लिक करें*

* नोटिस के पन्ने पर “Reply” बटन दबाएँ।

* Reply पेज पर आमतौर पर नोटिस का तारीख, नोटिस नंबर आदि स्वतः भरकर आ जाता है।

*✍️11. Write Notice Explanation में स्पष्टीकरण लिखें*

* Write Notice Explanation वाले फील्ड में अपना स्पष्टीकरण स्पष्ट, संक्षेप और तथ्यात्मक रूप में लिखें।

* स्पष्टीकरण में नोटिस के संदर्भ (नोटिस नंबर/तारीख) ज़रूर उल्लेख करें।

*✍️12. संबंधित दस्तावेज अपलोड करें*

* Choose Document में स्पष्टीकरण से जुड़े प्रार्थना पत्र/साक्ष्य/दस्तावेज़ का PDF अपलोड करें (उदाहरण: प्रमाण, ईमेल, रिपोर्ट)।

* फ़ाइल का नाम स्पष्ट रखें (जैसे: Reply_<NoticeNo>_<YourName>.pdf)।

*✍️13. Final Submit करें*

* दस्तावेज़ अपलोड करने के बाद “Final submit” पर क्लिक कर दें।

* सबमिट करने से पहले एक बार सारी प्रविष्टियाँ व संलग्न दस्तावेज़ जरूर जाँच लें।

*✍️14. सबमिशन के बाद की संभावित सूचनाएँ* 
👉🏻भविष्य में अलग-अलग प्रकार के नोटिस आ सकते हैं — जैसे प्रकरण समाप्त करें, कार्यवाही होना, *प्रतिकूल प्रविष्टि* आदि।

* पोर्टल पर नियमित रूप से चेक करते रहें; जो भी नया नोटिस आए, उसे डाउनलोड और सुरक्षित रखें।




Monday, 1 September 2025

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शिक्षक पदोन्नति में TET की अनिवार्यता एवं अल्पसंख्यक संस्थानों पर प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शिक्षक पदोन्नति में TET की अनिवार्यता एवं अल्पसंख्यक संस्थानों पर प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण

*1 प्रस्तावना: एक ऐतिहासिक निर्णय का परिचय*

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2025 को शिक्षा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक एवं दूरगामी फैसला सुनाया है, जो शिक्षक पदोन्नति में शिक्षक योग्यता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर इसके प्रभाव से संबंधित है। यह निर्णय देश भर के लाखों शिक्षकों के professional future को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा और भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता एवं मानकीकरण के एक नए युग का सूत्रपात करेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 23 के प्रावधानों को मजबूती प्रदान की है, जो शिक्षण पेशे में न्यूनतम योग्यता मानक स्थापित करने का प्रयास करता है। इस लेख में, हम इस निर्णय के विभिन्न पहलुओं, इसकी पृष्ठभूमि, तात्कालिक प्रभाव और दीर्घकालिक परिणामों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।

2 पृष्ठभूमि: TET अनिवार्यता का सफर और विवाद

2.1 TET का उद्भव और उद्देश्य

शिक्षक योग्यता परीक्षा (TET) का प्रावधान राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा 2011 में लागू किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य शिक्षण व्यवसाय में न्यूनतम मानक स्थापित करना और शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाना था। इस परीक्षा को द्विस्तरीय संरचना (स्तर 1: कक्षा 1-5 के लिए, स्तर 2: कक्षा 6-8 के लिए) में डिजाइन किया गया था ताकि शिक्षकों की विषयवस्तु ज्ञान और शिक्षण कौशल का मूल्यांकन किया जा सके। प्रारंभ में TET का प्रयोग मुख्य रूप से नई नियुक्तियों के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में पदोन्नति प्रक्रिया में इसे शामिल करने की मांग उठने लगी, जिसने एक व्यापक विवाद को जन्म दिया।

2.2 विवाद का केन्द्रबिन्दु

अनुभवी शिक्षकों के एक वर्ग ने पदोन्नति के लिए TET की अनिवार्यता का विरोध किया, उनका तर्क था कि दशकों का teaching experience TET जैसी written examination से कहीं अधिक मूल्यवान है। इसके विपरीत, युवा शिक्षक और शिक्षा reformists ने इस नीति का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप multiple legal challenges का सृजन हुआ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनवरी 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार को पदोन्नति प्रक्रिया में TET को अनिवार्य बनाने का निर्देश दिया था, जिसके बाद इस मुद्दे ने गति पकड़ी ।

2.3 न्यायिक सफर

इस मामले की न्यायिक यात्रा various उच्च न्यायालयों से होती हुई सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँची, जहाँ अंजुमन इशत ए तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र सरकार की याचिका को प्रमुखता मिली। इसके अतिरिक्त, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से भी कई याचिकाएं दायर की गईं, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया । पिछली सुनवाई 3 अप्रैल 2025 को हुई थी, और न्यायालय ने 1 सितंबर 2025 को अपना अत्यंत प्रतीक्षित निर्णय सुनाया।

3 सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तृत विवरण

3.1 मुख्य निर्णय: TET की अनिवार्यता

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में पदोन्नति के लिए TET उत्तीर्ण करने को अनिवार्य घोषित किया है। न्यायालय ने कहा कि केवल TET उत्तीर्ण शिक्षक ही उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पदोन्नति के पात्र होंगे। यह निर्णय NCTE की अधिसूचना (23 अगस्त 2010 और 29 जुलाई 2011) के अनुरूप है, जो शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित करती है । न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए यह एक आवश्यक कदम है, और RTE अधिनियम 2009 का उद्देश्य केवल नियुक्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पदोन्नति प्रक्रिया पर भी लागू होता है।

3.2 अल्पसंख्यक संस्थानों के संदर्भ में निर्णय

न्यायालय ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि TET की अनिवार्यता इन संस्थानों पर भी लागू होगी। न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस निर्णय को upheld किया, जिसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों को TET से छूट देने से अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन होगा, क्योंकि इससे गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों के शिक्षकों के साथ भेदभाव होगा । न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23 के provisions सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होते हैं, चाहे वे अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित हों या नहीं।

3.3 वरिष्ठता निर्धारण का मानदंड

न्यायालय ने वरिष्ठता के निर्धारण के संबंध में एक महत्वपूर्ण मुद्दे को भी स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि पदोन्नति में वरिष्ठता "पहली नियुक्ति की तिथि" के आधार पर निर्धारित की जाएगी, न कि "पहली पदोन्नति की तिथि" के आधार पर । यह निर्णय शिक्षकों की वरिष्ठता से जुड़े विवादों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और एक समान मानदंड स्थापित करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु:

पहलू न्यायालय का निर्णय तर्क
TET अनिवार्यता पदोन्नति के लिए अनिवार्य शिक्षण गुणवत्ता सुनिश्चित करना
अल्पसंख्यक संस्थान TET लागू होगा अनुच्छेद 14 का पालन करना
वरिष्ठता निर्धारण पहली नियुक्ति तिथि के आधार पर न्यायसंगत वरिष्ठता व्यवस्था

4 अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए विशेष प्रावधान और चुनौतियाँ

4.1 संवैधानिक संरक्षण बनाम शैक्षिक मानक

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(1) धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार प्रदान करता है . इस अनुच्छेद के तहत, अल्पसंख्यक संस्थानों को कertain स्वायत्तता प्राप्त है, जिसमें शिक्षकों की भर्ती और पाठ्यक्रम निर्धारण जैसे मामले शामिल हैं। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि शैक्षिक मानकों का maintenance अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी उतना ही आवश्यक है, और TET जैसी योग्यता परीक्षाएं इन मानकों को सुनिश्चित करने का एक माध्यम हैं।

4.2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और न्यायिक दृष्टिकोण

अल्पसंख्यक संस्थानों की मान्यता से संबंधित मामले पहले भी न्यायालय के समक्ष आ चुके हैं। 1967 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता . हालाँकि, 1981 में AMU अधिनियम में संशोधन करके इसे मुस्लिम अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता दी गई। सर्वोच्च न्यायालय की सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने हाल ही में 4:3 के बहुमत से एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों की पहचान के लिए एक समग्र मापदंड स्थापित किया है ।

4.3 TET अनिवार्यता का प्रभाव

अल्पसंख्यक संस्थानों पर TET की अनिवार्यता लागू होने से इन संस्थानों की स्वायत्तता पर certain प्रतिबंध लगे हैं, लेकिन न्यायालय का मानना है कि शिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक larger public interest है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक संस्थान अपने समुदाय के सदस्यों को नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते कि वे TET जैसे न्यूनतम मानकों को पूरा करते हों । इससे अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक अधिकारों का भी संरक्षण होगा और उनकी सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा मिलेगा।

5 फैसले के व्यापक प्रभाव और implications

5.1 शिक्षक समुदाय पर प्रभाव

इस निर्णय का सबसे अधिक प्रभाव उन शिक्षकों पर पड़ेगा जो TET से पहले नियुक्त किए गए थे और जिन्होंने दशकों तक सेवा दी है। इन शिक्षकों को now पदोन्नति पाने के लिए TET उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा, जिसके लिए उन्हें additional preparation की आवश्यकता हो सकती है। हालाँकि, न्यायालय ने संक्रमणकालीन प्रावधानों की संभावना व्यक्त की है, जैसे कि विशेष coaching या परीक्षा में छूट for certain age groups, लेकिन इसके बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश अभी आना बाकी है ।

5.2 शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव

इस निर्णय का सकारात्मक प्रभाव शिक्षा की overall गुणवत्ता पर पड़ने की उम्मीद है। TET की अनिवार्यता से शिक्षकों का मानकीकरण होगा और छात्रों को better quality education मिल सकेगी। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के भी अनुरूप है, जो शिक्षण profession में सुधार पर जोर देती है। इसके अतिरिक्त, अखिल भारतीय स्तर पर एक समान मानक अपनाने से different राज्यों के बीच असमानता में भी कमी आएगी।

5.3 प्रशासनिक और policy implications

इस निर्णय के बाद, राज्य सरकारों और शिक्षा बोर्डों को अपनी पदोन्नति नीतियों में संशोधन करना होगा और TET को अनिवार्य घटक बनाना होगा। इसके लिए नियमित TET परीक्षाएं आयोजित करने की भी आवश्यकता होगी, ताकि शिक्षकों को promotion के अवसर सुलभ हों। इसके अतिरिक्त, अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता हो सकती है, ताकि उनकी संवैधानिक स्वायत्तता का भी ध्यान रखा जा सके।

6 कार्यान्वयन में चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

6.1 संभावित चुनौतियाँ

इस निर्णय के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ आ सकती हैं। सबसे पहले, वरिष्ठ शिक्षकों के एक वर्ग द्वारा इस नीति का विरोध जारी रह सकता है, जो इसे अपने अनुभव की अवमानना मानते हैं। दूसरे, TET परीक्षा आयोजित करने की infrastructure और frequency भी एक चुनौती हो सकती है, especially ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में। तीसरे, अल्पसंख्यक संस्थान इस निर्णय को अपने संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण मान सकते हैं और further legal challenges का सहारा ले सकते हैं।

6.2 भविष्य की राह

इन चुनौतियों के बावजूद, इस निर्णय को शिक्षा reform की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। भविष्य में, न्यायालय या शिक्षा मंत्रालय द्वारा विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं, जैसे कि वरिष्ठ शिक्षकों के लिए TET में छूट या वैकल्पिक मूल्यांकन व्यवस्था। इसके अतिरिक्त, Teacher training programs को बढ़ावा देकर शिक्षकों को TET की तैयारी में मदद की जा सकती है। अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए, विशेष कोचिंग या customized परीक्षा की व्यवस्था भी एक समाधान हो सकता है।

7 निष्कर्ष: एक नए युग की शुरुआत

सर्वोच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक निर्णय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक नए युग का सूत्रपात करता है, जहाँ गुणवत्ता और मानकीकरण को utmost importance दी जाएगी। यह निर्णय शिक्षकों के लिए एक challenge भी है और एक opportunity भी, क्योंकि इससे उन्हें अपने कौशल को upgrade करने और professional development पर ध्यान देने का incentive मिलेगा। इसके साथ ही, यह निर्णय अल्पसंख्यक अधिकारों और शैक्षिक मानकों के बीच एक समुचित संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है, जो एक लोकतांत्रिक समाज के लिए अत्यावश्यक है।

भविष्य में, राज्य सरकारों, शिक्षा बोर्डों और शैक्षणिक संस्थानों को मिलकर काम करना होगा ताकि इस निर्णय का क्रियान्वयन effective ढंग से किया जा सके और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। इसके लिए adequate resources, training facilities और policy support की आवश्यकता होगी। यह निर्णय भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक milestone के रूप में याद किया जाएगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए quality education की नींव रखेगा।

मानव संपदा पोर्टल पर चयन वेतनमान के लिए कैसे आवेदन करें

मानव सम्पदा पोर्टल पर चयन वेतनमान आवेदन ऑनलाइन अपलोड करने के लिए, आपको सबसे पहले पोर्टल पर लॉगिन करना होगा, फिर "चयन वेतनमान" विकल्प पर क्लिक करना होगा, और वहां से आवेदन अपलोड करने का विकल्प चुनना होगा। उसके बाद आपको आवश्यक दस्तावेजों को स्कैन करके अपलोड करना होगा, और अंत में आवेदन को सबमिट करना होगा। 
विस्तार से:
🙏🙏🙏🙏🙏
1. मानव सम्पदा पोर्टल पर लॉगिन:
सबसे पहले, मानव सम्पदा पोर्टल की आधिकारिक वेबसाइट
 (http://ehrms.upsdc.gov.in) पर जाएं और "eHRMS लॉगिन" लिंक पर क्लिक करें. 

2. लॉगिन विवरण दर्ज करें:
अपना विभाग, यूजर आईडी, पासवर्ड और कैप्चा कोड डालकर लॉगिन करें. 

3. चयन वेतनमान विकल्प पर क्लिक करें:
लॉगिन करने के बाद, डैशबोर्ड पर "चयन वेतनमान" या इसी तरह के विकल्प पर क्लिक करें. 

4. आवेदन अपलोड करें:
आवेदन अपलोड करने के लिए आवश्यक विकल्प (जैसे "आवेदन जमा करें",

 "अप्लिकेशन अपलोड करें") चुनें. 

5. आवश्यक दस्तावेज स्कैन करें:

6.आवश्यक दस्तावेजों (जैसे नियुक्ति पत्र, योग्यता प्रमाण पत्र, चयन पत्र आदि) को स्कैन करें. 

6. दस्तावेज़ अपलोड करें:
स्कैन किए गए दस्तावेजों को निर्दिष्ट स्थान पर अपलोड करें
 
7. आवेदन सबमिट करें:
सभी विवरण और दस्तावेज अपलोड करने के बाद, आवेदन को सबमिट करें

8. पुष्टि प्राप्त करें:
आवेदन सफलतापूर्वक सबमिट करने के बाद, आपको एक पुष्टि संदेश मिलेगा।

Friday, 22 August 2025

प्रेरणा पोर्टल” पर विभाग से प्राप्त टैबलेट/सिम जानकारी भरने की स्टेप-बाय-स्टेप प्रक्रिया

*प्रेरणा पोर्टल” पर विभाग से प्राप्त टैबलेट/सिम जानकारी भरने की स्टेप-बाय-स्टेप प्रक्रिया:*👇

* *1. अपने टैबलेट में *#06# डायल करें।*

_स्क्रीन पर IMEI दिखेगा; IMEI 1नोट कर लें।_

* 2. ब्राउज़र में prernaup.in टाइप करके होम पेज खोलें।

* 3. *Bank Data Upload* सेक्शन में जाएँ और *Teachers Login* पर क्लिक करें।

* 4. *New Registration 2025-26* चुनें।

* 5. अपना मोबाइल नंबर दर्ज करें, OTP भरें, और *Login पर क्लिक करें।*

* 6. स्क्रीन के बाएँ मेन्यू से *टैबलेट/सिम इनफार्मेशन* पर क्लिक करें।

* 7. पूछे गए प्रश्न *“क्या आपके विद्यालय में टैबलेट प्राप्त हुए हैं?”* में:

_यदि मिले हैं तो हाँ (Yes) चुनें, नहीं मिले तो नहीं (No) चुनें।_

* 8. हाँ चुनने पर, *आपके विद्यालय को जितने टैबलेट मिले हैं वही संख्या चुनें।*

* 9. अब प्रत्येक टैबलेट के लिए नीचे दी जानकारी भरें:

IMEI नंबर 
SIM नंबर 
SIM कंपनी का नाम (जैसे Jio/Airte)

* 10. सारी प्रविष्टियाँ ध्यान से जाँच लें (अंकों में स्पेस/डैश न दें), फिर *Save/Submit* पर क्लिक करें।

Sunday, 17 August 2025

LT Grade 2017 और TET विवाद – न्यायालय का निर्णय

LT Grade 2017 और TET विवाद – न्यायालय का निर्णय
मामला

याचिकाकर्ता Mohd. Tasleem व अन्य ने दिनांक 21.12.2016 को जारी विज्ञापन को चुनौती दी थी। इस विज्ञापन में 9342 L.T./Trained Graduate Teacher पदों की भर्ती का उल्लेख था।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि चूँकि ये पद कक्षा 6 से 10 तक पढ़ाने के लिए हैं, इसलिए इसमें TET (Teacher Eligibility Test) को अनिवार्य योग्यता के रूप में शामिल किया जाना चाहिए था।

राज्य सरकार का पक्ष:

सरकार ने स्पष्ट किया कि यह भर्ती केवल कक्षा 9 और 10 के लिए है, न कि कक्षा 6 से 8 के लिए।
चूँकि TET की अनिवार्यता सिर्फ कक्षा 6 से 8 की नियुक्तियों पर लागू होती है, इसलिए यहाँ TET आवश्यक नहीं है।

न्यायालय का निष्कर्ष:
विज्ञापन केवल कक्षा 9-10 के लिए मान्य है।
TET की आवश्यकता कक्षा 6-8 में होती है, इसलिए यहाँ विवाद का कोई आधार नहीं है।
परिणामस्वरूप, याचिका को निस्तारित/खारिज कर दिया गया।

👉 यह आदेश दिनांक 28 फरवरी 2017 को मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने पारित किया।

👇👇👇👇👇
विशेष टिप्पणी 

 अपनी बात सबूत और तथ्यों के साथ रखते हैं।

LT Grade 2017 में उठे इस विवाद को कोर्ट ने पूरी तरह खारिज कर दिया।


आप चाहें तो पूरा जजमेंट पढ़ सकते हैं।
इसलिए आप पूरी तरह निश्चिंत होकर अपनी Answer Writing और तैयारी पर ध्यान दें।

✨ साफ संदेश: LT Grade भर्ती में TET की कोई अनिवार्यता नहीं है।

Wednesday, 13 August 2025

इंचार्ज हेड शिक्षकों को मिले पद के अनुसार वेतन और एरियर : सुप्रीम कोर्ट

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
- 173 पेज की SLP दायर करते हुए मुख्य तर्क दिए:
  1. किसी भी शिक्षक को प्रशासनिक आदेश से प्रधानाध्यापक का चार्ज नहीं दिया गया 
  2. RTE Act, 2009 की धारा 25 के अनुसार कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों में प्रधानाध्यापक की आवश्यकता ही नहीं 
  3. U.P. Basic Education Act, 1972 में इंचार्ज/ऑफिसिएटिंग प्रधानाध्यापक नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं 

सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प सुनवाई:

कोर्ट की सख्त टिप्पणियाँ-
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को निम्नलिखित शब्दों में खारिज किया:

>शिक्षकों का शोषण बंद कीजिए! हमारे देश का शिक्षा तंत्र पहले ही सबसे खराब स्थिति में है, और आप बिना हेड टीचर्स के विद्यालय चला रहे हैं!"

मुख्य बहस के बिंदु-
1. नियमावली का प्रावधान*: शिक्षकों की ओर से पेश अधिवक्ता ने नियमावली के पेज 70, पैराग्राफ 6 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि सीनियर-मोस्ट शिक्षक से हेडमास्टर का कार्य लिया जाएगा।
2. कार्य और वेतन का संबंध: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति उच्च पद का कार्य कर रहा है तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए।
3. प्रशासनिक लापरवाही: कोर्ट ने सरकार से पूछा कि यदि नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति नहीं हो रही है, तो इंचार्ज हेडमास्टरों को प्रमोशन क्यों नहीं दिया जा रहा? 

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (13 अगस्त 2025)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में:

1. SLP खारिज की और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा
2. वेतन समानता* का सिद्धांत स्थापित किया कि कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए,
3. बकाया राशि देने का निर्देश दिया, जो 31 मई 2014 से देय होगी,
4. शोषण रोकने के लिए सरकार को कड़ा संदेश दिया 

निर्णय के व्यापक प्रभाव:

शिक्षकों पर प्रभाव-
- लगभग *50,000+ इंचार्ज हेडमास्टरों को लाभ
- 6-8 वर्षों का बकाया वेतन मिलेगा
- मनोबल बढ़ने से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार की संभावना

शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव-
- राज्य सरकार को अब या तो:
  - नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति करनी होगी *या*
  - इंचार्ज हेडमास्टरों को पूरा वेतन देना होगा
- विद्यालय प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ेगी
- शिक्षकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता 

 न्यायिक महत्व-
- *"कार्य के अनुरूप वेतन"* का सिद्धांत स्थापित
- सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों की मजबूत न्यायिक सुरक्षा
- भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल

🚨लंबित मुद्दे और भविष्य की चुनौतियाँ-

वित्तीय बोझ-
- राज्य सरकार पर करोड़ों रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ
- बकाया वेतन का भुगतान कैसे होगा, यह एक बड़ा सवाल?

प्रशासनिक सुधार-
- नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता
- TET योग्यता संबंधी विवादों का समाधान 

 निष्कर्ष: एक न्यायिक क्रांति-

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: इंचार्ज हेडमास्टरों को मिलेगा पूरा वेतन और बकाया


*📜 परिचय: एक न्यायिक मील का पत्थर*

13 अगस्त 2025 का दिन उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत हजारों इंचार्ज हेडमास्टरों के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें इंचार्ज हेडमास्टरों को हेडमास्टर के समान वेतन देने का निर्देश दिया गया था। यह निर्णय न केवल शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय का नया मानदंड भी स्थापित करता है। 👨‍⚖️📚

* ⚖️ *मामले की विस्तृत पृष्ठभूमि*

*📌 मूल विवाद का सार*
- उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में सहायक अध्यापकों को "इंचार्ज हेडमास्टर" का दायित्व सौंपा गया
- ये शिक्षक हेडमास्टर के सभी कार्य करते थे, लेकिन उन्हें केवल सहायक अध्यापक का वेतन मिलता था
- त्रिपुरारी दुबे और अन्य शिक्षकों ने इस अन्याय के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया 

*🏛️ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश (30 अप्रैल 2025)*
- इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया: *"कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए"*
- निर्णय में कहा गया कि यदि कोई शिक्षक हेडमास्टर की जिम्मेदारी निभा रहा है, तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए
- कोर्ट ने राज्य सरकार को इन शिक्षकों को हेडमास्टर के वेतनमान और बकाया राशि देने का निर्देश दिया 

 🔄 *राज्य सरकार की प्रतिक्रिया*
- उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
- 173 पेज की SLP दायर करते हुए मुख्य तर्क दिए:
  1. किसी भी शिक्षक को प्रशासनिक आदेश से प्रधानाध्यापक का चार्ज नहीं दिया गया 
  2. RTE Act, 2009 की धारा 25 के अनुसार कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों में प्रधानाध्यापक की आवश्यकता ही नहीं 
  3. U.P. Basic Education Act, 1972 में इंचार्ज/ऑफिसिएटिंग प्रधानाध्यापक नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं 

🏛️ *सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प सुनवाई*

👨‍⚖️ *कोर्ट की सख्त टिप्पणियाँ*
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों को निम्नलिखित शब्दों में खारिज किया:

> *"शिक्षकों का शोषण बंद कीजिए! हमारे देश का शिक्षा तंत्र पहले ही सबसे खराब स्थिति में है, और आप बिना हेड टीचर्स के विद्यालय चला रहे हैं!"*

🔍 *मुख्य बहस के बिंदु*
1. *नियमावली का प्रावधान*: शिक्षकों की ओर से पेश अधिवक्ता ने नियमावली के पेज 70, पैराग्राफ 6 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि सीनियर-मोस्ट शिक्षक से हेडमास्टर का कार्य लिया जाएगा।
2. *कार्य और वेतन का संबंध*: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति उच्च पद का कार्य कर रहा है तो उसे उस पद का वेतन मिलना चाहिए।
3. *प्रशासनिक लापरवाही*: कोर्ट ने सरकार से पूछा कि यदि नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति नहीं हो रही है, तो इंचार्ज हेडमास्टरों को प्रमोशन क्यों नहीं दिया जा रहा? 

✍️ *सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय (13 अगस्त 2025)*

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में:

1. *SLP खारिज* की और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा ✅
2. *वेतन समानता* का सिद्धांत स्थापित किया कि कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए 💰
3. *बकाया राशि* देने का निर्देश दिया, जो 31 मई 2014 से देय होगी 📅
4. *शोषण रोकने* के लिए सरकार को कड़ा संदेश दिया ⚠️ 

📊 *निर्णय के व्यापक प्रभाव*

 👩‍🏫 *शिक्षकों पर प्रभाव*
- लगभग *50,000+* इंचार्ज हेडमास्टरों को लाभ
- *6-8 वर्षों* का बकाया वेतन मिलेगा
- मनोबल बढ़ने से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार की संभावना 📈

🏫 *शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव*
- राज्य सरकार को अब या तो:
  - नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति करनी होगी *या*
  - इंचार्ज हेडमास्टरों को पूरा वेतन देना होगा
- विद्यालय प्रबंधन में पारदर्शिता बढ़ेगी
- शिक्षकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता 🌟 

 ⚖️ *न्यायिक महत्व*
- *"कार्य के अनुरूप वेतन"* का सिद्धांत स्थापित
- सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों की मजबूत न्यायिक सुरक्षा
- भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल 👨‍⚖️

🚨 *लंबित मुद्दे और भविष्य की चुनौतियाँ*

💰 *वित्तीय बोझ*
- राज्य सरकार पर *करोड़ों रुपये* का अतिरिक्त वित्तीय बोझ
- बकाया वेतन का भुगतान कैसे होगा, यह एक बड़ा सवाल ❓

🏛️ *प्रशासनिक सुधार*
- नियमित हेडमास्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता
- TET योग्यता संबंधी विवादों का समाधान 

 📝 *निष्कर्ष: एक न्यायिक क्रांति*

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि पूरे देश में कार्य और वेतन की समानता के सिद्धांत को मजबूती प्रदान करता है। यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ✊

कोर्ट की यह टिप्पणी कि *"शिक्षकों का शोषण बंद कीजिए"* सभी राज्य सरकारों के लिए एक सबक है कि वे शिक्षकों के अधिकारों का सम्मान करें और उन्हें उनके योगदान के अनुरूप पारिश्रमिक दें। शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं, और उनके साथ न्याय होना हर सभ्य समाज का कर्तव्य है। 🇮🇳📚

> *"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।"*  
> - संत कबीर

यह निर्णय वास्तव में गुरुओं (शिक्षकों) के प्रति हमारे समाज के ऋण को चुकाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

Thursday, 13 February 2025

मिड डे मील (MDM)/ पीएम पोषण योजना की परिवर्तन लागत की दरें शुरू से अब तक

प्राथमिक विद्यालय हेतु परिवर्तन लागत*
==================
नवंवर 2010 से मार्च 2011 = 2.69 रुपये

अप्रैल 2011 से मई 2012 = 2.89 रुपये

जुलाई 2012 से मई 2013 = 3.11 रुपये

जुलाई 2013 से मई 2014 = 3.34 रुपये

जुलाई 2014 से जून 2015 = 3.59 रुपये

जुलाई 2015 से 3 जनवरी 2016 = 3.76 रुपये

4 जनवरी 2016 से जून 2016 तक =3.86 रुपये

जुलाई 2016 से 14 नवम्बर 2018 तक = 4.13 रुपये

15 नवंबर 2018 से जून 2019 तक = 4.35 रुपये

जुलाई 2019 से मार्च 2020 तक = 4.48 रुपये

अप्रैल 2020 से 30 सितम्बर 2022 तक  = 4.97 रुपये

01 अक्टूबर 2022 से 30 नवम्बर 2024 तक= 5.45 रुपये

01 दिसंबर से 2024 से ....अब तक= 6.19 रुपये

*जूनियर विद्यालय हेतु  परिवर्तन लागत*
===================
नवंवर 2010 से मार्च 2011 = 4.04 रुपये

अप्रैल 2011 से मई 2012 = 4.33 रुपये

जुलाई 2012  से  मई 2013 = 4.65 रुपये
 
जुलाई 2013 से मई 2014 = 5.00 रुपये

जुलाई 2014 से जून 2015 = 5.38 रुपये

जुलाई 2015 से 3 जनवरी 2016 = 5.64  रुपये

4 जनवरी 2016 से जून 2016 तक = 5.78 रुपये

जुलाई 2016 से 14 नवम्बर 2018 तक = 6.18 रुपये

15 नवंबर 2018 से जून 2019 तक = 6.51रुपये

जुलाई 2019 से मार्च 2020 तक = 6.71 रुपये

अप्रैल 2020 से 30 सितम्बर 2022 तक = 7.45 रुपये

01 अक्टूबर 2022 से 30 नवम्बर 2024 तक= 8.17 रुपये

01 दिसंबर से 2024 से ....अब तक= 9.29 रुपये